पटना : नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत परिवेशी वायु गुणवत्ता (Ambient air quality ) के मामले में शामिल शहरों (Non-attainment cities) में से एक पटना में खराब होती एयर क्वालिटी राष्ट्रीय चिंता का कारण बन रही है। पटना में गंभीर होते वायु प्रदूषण और लोगों पर पड़ते दुष्प्रभावों को रेखांकित करने की दिशा में ‘एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो’(EPIC-Chicago शिकागो ) ने सेंटर फॉर एन्वॉयरोंमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) के साथ मिल कर ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (Air Quality Life Index ) से जुड़े नतीजों को विभिन्न स्टैक्होल्डर्स को जागरूक और शिक्षित करने के लिए साझा किया, और सरकार से शहरों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अनिवार्य कदम उठाने की अपील की। एपिक, शिकागो के एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) के अनुसार पटना के लोग करीब 7.7 साल ज्यादा जी सकते हैं, अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के पर्टिकुलेट मैटर्स (PM2.5) से संबंधित गाइडलाइन पूरे किए जाएं। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1998 में इसी एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड को पूरा करने से जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) में चार सालों का लाभ होता। इस तरह के महत्वपूर्ण नतीजे और अन्य तथ्यों पर एपिक इंडिया और सीड द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यशाला में चर्चा की गई। कार्यशाला के दौरान सीड की सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने बताया कि ‘‘वायु प्रदूषण से निजात पाने के कदमों के लिए मानव स्वास्थ्य ही केंद्रीय बिंदु होना चाहिए। वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर बेहद घातक प्रभाव पड़ रहा है, खासकर सबसे अधिक कमजोर उम्र व अवस्था के लोगों जैसे बच्चे, बूढ़े और महिलाओं पर। बिहार सरकार को अनिवार्य तौर पर क्लीन एयर एक्शन प्लान को ठोस ढंग से लागू करना चाहिए।’’ इसी विषय पर शिकागो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के (मिल्टन फ्राइडमैन प्रतिष्ठित सेवा) प्रोफेसर और एपिक-शिकागो के डायरेक्टर डॉ माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा कि ‘पूरी दुनिया भर में लोग जिस हवा में सांस ले रहे हैं, वह उनके सेहत के लिए गंभीर जोखिम पैदा करता है। लेकिन जिस तरह से ये जोखिम और खतरे फैलते हैं, वे अस्पष्ट होते हैं और भ्रम पैदा करनेवाले होते हैं, जैसे वायु प्रदूषण की सघनता कई रंगों जैसे लाल, भूरा, हरा और नारंगी में परिवर्तित होती है। इन रंगों का लोगों के जीवन में क्या मतलब होता है, वह प्रायः अस्पष्ट रहा है। मैंने और मेरे सहकर्मियों ने एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स को तैयार किया है (जिसमें ‘एल’ का मतलब ‘लाइफ’ है) और इस इंडेक्स के जरिए इन कमियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है। यह वायु में प्रदूषित तत्वों जैसे पर्टिकुलेट मैटर की सघनता का अध्ययन करता है और इन्हें संभवतः अभी उपलब्ध सबसे जरूरी मापदंड यानी जीवन प्रत्याशा के रूप मे तब्दील करता है।’’ मानव समाज पर वायु प्रदूषण के असर से जुड़े तथ्यों की ओर संकेत करते हुए एम्स पटना में डॉक्टर नीरज अग्रवाल ने कहा कि ‘‘जहरीली हवा में सांस लेने के नतीजों को हमारे हॉस्पीटल और क्लीनिक में बढ़ रहे मरीजों की संख्या से समझा जा सकता है। श्वास संबंधी शिकायतों से जुड़े मरीजों की बढ़ती संख्या का निश्चित तौर पर हमारे शहर में बदतर होते वायु प्रदूषण से सीधा संबंध है। पहले हमें वैसे मरीज मिलते थे, जो धूम्रपान करते थे
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